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लेखनी कहानी -10-Oct-2022 शरद पूर्णिमा का चांद

रति आज रह रह कर छत पर जाकर चांद को देख रही थी । वह बार बार आसमान की ओर टकटकी लगाकर देखती कि चांद निकल आया है कि नहीं । मगर आसमान में तो दूर दूर तक काले काले बादल ही नजर आ रहे थे । चांद का कोई अता पता नहीं था । 

"ये चांद आज कहां जाकर छुप गया है ? रोज तो यहां बदलियों के साथ आंख मिचौली खेला करता था । आज कहीं अता पता ही नहीं है उसका । आज तो वैसे भी शरद पूर्णिमा का चांद है । सबसे सुंदर, सबसे धवल , सबसे उज्जवल। कहीं किसी की नजर तो नहीं लग गई है उसको ? इन बादलों को भी आज ही छाना था क्या ? देखो, कैसे इतरा रहे हैं ये बादल चांद को अपने आगोश में छुपाकर ? ऐसा भी कोई बहुत बढिया काम नहीं किया है आपने ? समझे बादल महाशय ! सभी गृहणियां कितनी परेशान हो रही हैं और तुम अपनी शेखी बघार रहे हो ? कुछ शर्म बची है कि नहीं ? पर ये तो सुनते ही नहीं । बहरे बने पड़े हैं बेशर्म कहीं के ! अब मैं क्या करूं ? कैसे अपने चांद को देखूं" ? रति मन ही मन बड़बड़ाये जा रही थी । आज उसने शरद पूर्णिमा का व्रत रखा था । चांद को देखकर ही व्रत खोलना था उसे । 
रति की शादी अभी चार महीने पहले ही हुई थी । नकुल और रति में गजब की बॉन्डिंग थी । दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे जैसे । मन एक पर तन अलग अलग । नकुल को कंपनी के काम से अमरीका जाना पड़ गया था । रति का असली चांद तो वही था । आसमानी चांद में वह नकुल का अक्स ही तो देखना चाहती थी । मगर इस चांद ने उसे धोखा दे दिया । "और ये बादल ! जी करता है कि इनका कचूमर बना दूं अभी । दुश्मन कहीं के ! इनको भी आज ही जनम जनम का बैर निकालना था ? राक्षस कहीं के ! ये तो नहीं कि कहीं जाकर बरस जायें, यहां आकर चांद को छुपाकर बैठे हैं शैतान । कीड़े पडेंगे कीड़े । सुहागिनों की हाय लगेगी तुमको । तुम क्या समझते हो कि तुम सर्व शक्तिमान हो ? ये गलतफहमी निकाल दो दिल से । पतिव्रता स्त्री से बड़ा कोई भी नहीं होता है । स्वयं विष्णु भगवान को भी एक पतिव्रता स्त्री का सतीत्व भंग करना पड़ा था तब जाकर वे उसके पति जालंधर का वध कर पाये थे । शाप लगेगा तुम्हें हमारा" । रति जल भुन कर बादलों को शाप दिये जा रही थी । 

कभी वह आसमान को देखती तो कभी अपने फोन को । नकुल का फोन आनेवाला था मगर अभी तक नहीं आया था । क्या अभी तक सो रहा है नकुल ? भारत और अमरीका में समय में लगभग बारह घंटे का अंतर है । जब भारत में रात के नौ बज रहे हैं तो अमरीका में दिन के नौ बज रहे होंगे । नकुल ने कहा था कि वह चांद निकलने के समय फोन करेगा, पर उसका फोन नहीं आया था अब तक । 

रति रह रह कर विचार करती कि फोन क्यों नहीं आया नकुल का । कहीं वह भूल तो नहीं गया ? हो सकता है कि वह भूल गया हो । काम में इतना व्यस्त हो जाता है कि सब कुछ भूल जाता है नकुल । उसकी इस आदत को रति जल्दी ही पहचान गई थी । तो क्या वह उसे फोन कर ले ? नहीं नहीं , क्या पता वह रात को कब तक जागा हो और शायद वह अभी तक सो रहा हो ? उसे जगाना ठीक नहीं होगा । तो क्या वह मैसेज करे ? कर तो चुकी है वह अब तक दो तीन बार मैसेज मगर उसने देखा तक नहीं उन्हें । फिर तो पक्का वह सो रहा होगा । सोने के मामले में वह कुंभकर्ण है , घोड़े बेचकर सोता है । 

रति की बेचैनी बढती जा रही थी । ना तो चांद ही दिख रहा है और ना नकुल का फोन ही आ रहा है । रति की जान तो नकुल में बसी हुई है । और तो कोई बात नहीं , उसकी तबीयत ठीक रहे बस । इसी बात की फिक्र रहती है उसे । बड़ी जल्दी सर्दी जुकाम हो जाता है नकुल को । जरा सी भी ठंड बर्दाश्त नहीं कर सकता है वह । बहुत नाजुक है । बिल्कुल छुई-मुई जैसा । अमरीका में तो ठंड पड़ती भी कुछ ज्यादा ही है । बस, इसी बात की चिंता रहती है रति को । 
"हम स्त्रियां कितनी चिंता करती हैं मगर ये पति लोग बिल्कुल भी परवाह नहीं करते हैं । हरदम लापरवाह बने रहते हैं । नारी जीवन कितना कठिन है रति , काश ये बात नकुल जैसे पतिदेव समझ पाते" ? 

वह अभी कुछ इसी तरह सोच ही रही थी कि छत पर चांदनी फैलने लगी । उजाला हो गया । बरबस उसका ध्यान आसमान की ओर चला गया । आसमान में चांद हौले हौले से मुस्कुरा रहा था । रति को ऐसा लगा जैसे वह चांद नहीं नकुल है और कह रहा है "देखा , मैंने तुम्हारी धड़कनों की आवाज सुन ली थी और मैं दौड़ा दौड़ा आ गया । अब तो खुश हो ना तुम ? मुझे भी कौन सा चैन आ रहा था वहां पर ? कितना संघर्ष किया है मैंने इन बादलों से , तुम क्या जानो ? अब मुझे भी आराम मिल गया है । प्रिया को देखे बिना मुझे भी चैन कहां था" ? 

रति अपलक चांद को देखती रही और नकुल के प्रेम में भीगती रही । उसकी आंखों से गंगा जमना बहने लगी । उसका दुख , गुबार आंसू बनकर बाहर निकलने लगा । वह निर्मल हो गई थी । 

अचानक फोन की घंटी बज उठी । वह लपक कर दौड़ी और फोन पर झपट पड़ी । जाहिर है फोन नकुल का ही था 
"सॉरी,सॉरी,सॉरी जान । रात को मेरा फोन गिर पड़ा था इसलिए काम नहीं कर पा रहा था । मैं कब से तड़प रहा था तुमसे बात करने के लिए, मगर मैं मजबूर था । मेरे पास और कोई विकल्प भी नहीं था तुमसे बात करने का । अब तुमसे बात हो रही है तो मुझे कितना अच्छा लग रहा है , मैं बता नहीं सकता हूं । पहले ये तो बताओ कि मेरी जान कैसी है ? शरद पूर्णिमा का चांद दिखा कि नहीं" ? 

रति नकुल की आवाज सुनकर ही भाव विभोर हो गई थी जैसे राधा श्रीकृष्ण की बंसी की आवाज सुनकर हो जाया करती थीं । पूरे बदन में कंपकंपी सी होने लगी । रति नकुल को प्रेम नहीं करती थी बल्कि वह नकुल में जीती थी । उसके होठों से एक भी शब्द नहीं निकला । होंठ केवल थरथरा रहे थे । पर दिल तो बोल रहा था और दिल की आवाज नकुल बहुत अच्छी तरह से सुन लेता था । रति को दोनों चांद एक साथ दिखाई दे गये । वीडियो कॉलिंग करके । 😊😊

श्री हरि 
10.10.22 


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5 Comments

Seema Priyadarshini sahay

10-Oct-2022 06:20 PM

बहुत खूबसूरत

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Chetna swrnkar

10-Oct-2022 06:07 PM

बहुत सुंदर 👌

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shweta soni

10-Oct-2022 03:44 PM

Bahut achhi rachana

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